भारत-रूस के बीच 10 हजार करोड़ की बड़ी रक्षा डील: 300 S-400 मिसाइलों और पैंटसिर सिस्टम की खरीद पर बातचीत
11/28/20251 min read


भारत-रूस रक्षा संबंधों का इतिहास
भारत और रूस के बीच रक्षा संबंधों का इतिहास 1947 से आरंभ होता है, जब स्वतंत्रता के बाद भारत ने अपनी रक्षा क्षमताओं को मजबूत करने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता महसूस की। इस संदर्भ में, सोवियत संघ ने भारत को सैन्य तकनीकी सहायता प्रदान की, जिससे दोनों देशों के बीच सहयोग की शुरुआत हुई। 1960 के दशक में, भारत ने सोवियत संघ से विभिन्न प्रकार के हथियारों और सैन्य प्रणाली की खरीद प्रारंभ की, जिसमें टैंक, विमान और युद्धपोत शामिल थे। यह सहयोग धीरे-धीरे बढ़ने लगा, और 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद भारत ने सोवियत संघ के साथ एक रक्षा सहयोग संधि पर हस्ताक्षर किए, जिसने दोनों देशों के बीच रणनीतिक साझेदारी को और मजबूत किया।
1980 के दशक में, भारत ने सोवियत संघ से एरोस्पेस और मिसाइल प्रौद्योगिकी में महत्वपूर्ण सहयोग प्राप्त किया। इसके फलस्वरूप, भारत ने अपने स्वयं के रक्षा कार्यक्रमों में प्रगति की, जैसे कि अग्नि और पृथ्वी मिसाइल प्रणाली का विकास। 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद भी, भारत और रूस के बीच रक्षा सहयोग जारी रहा। रूस ने भारत को उसकी सैन्य आवश्यकताओं के लिए आवश्यक प्रौद्योगिकी और उपकरणों की आपूर्ति जारी रखी, जिसमें सुखोई-30 और टी-90 टैंक जैसे आधुनिक विकल्प शामिल थे।
हाल के वर्षों में, भारत और रूस के बीच रक्षा संबंधों में व्यापक वृद्धि देखी गई है। दोनों देशों ने 2016 में एक नई सैन्य-तकनीकी सहयोग योजना पर हस्ताक्षर किए, जो कि उनके द्विपक्षीय संबंधों की एक नई दिशा को इंगित करता है। इसके अंतर्गत, भारत ने रूस से S-400 जैसी अत्याधुनिक रक्षा प्रणालियों की खरीद की योजना बनाई है। इस लंबे इतिहास के माध्यम से, भारत और रूस के बीच रक्षा सहयोग ने न केवल दोहरे देशों के बीच संबंधों को मजबूत किया है, बल्कि क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
S-400 मिसाइल प्रणाली की विशेषताएँ
S-400 ट्रायंफ (SA-21 ग्रिल) एक अत्याधुनिक एयर डिफेंस मिसाइल प्रणाली है, जिसे रूस ने विकसित किया है। यह प्रणाली उच्च गतिशीलता और तकनीकी दक्षता के लिए जानी जाती है, जिसे लंबी दूरी की लक्ष्य भेदने की क्षमता प्रदान करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। S-400 प्रणाली में विभिन्न प्रकार की मिसाइलें शामिल हैं, जो विभिन्न ऊँचाई और दूरी पर लक्ष्य भेदने में सक्षम हैं। इसके प्रमुख संस्करणों में, 40N6, 48N6, और 9M96 मिसाइलें शामिल हैं, जो विदेशी विमानों और बैलिस्टिक मिसाइलों को प्रभावी ढंग से नष्ट कर सकती हैं।
S-400 प्रणाली की एक प्रमुख विशेषता इसकी रडार प्रणाली है। यह एक अत्याधुनिक तीन-चरणीय रडार प्रणाली को समाहित करती है, जो दूर से ही उच्च गति वाले लक्ष्यों को पहचानने और ट्रैक करने में सक्षम है। इसकी पहचान क्षमता लगभग 600 किलोमीटर की दूरी से लक्ष्यों का पता लगाने की अनुमति देती है। इसके अलावा, S-400 मिसाइल प्रणाली अपने स्वचालित और सेमी-स्वचालित संचालन के लिए भी प्रशंसा प्राप्त करती है, जो इसे विभिन्न युद्ध स्थितियों में उपयोगी बनाती है।
युद्ध के संदर्भ में, S-400 एक बहुउपयोगी प्रणाली है जो न केवल वायु रक्षा के कार्यों के लिए, बल्कि संयुक्त संचालन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। इसकी प्रभावी मिसाइल क्षमता न केवल वायु से वायु में हमलों का प्रतिकार करती है, बल्कि जमीनी और समुद्री लक्ष्यों के खिलाफ भी सुरक्षा प्रदान करती है। भारत जैसे राष्ट्र के लिए, S-400 प्रणाली सुरक्षा के एक नई परत जोड़ने में सक्षम है, जो उसकी सामरिक स्थिति को मजबूती प्रदान करती है। यह प्रणाली आधुनिक युद्ध के विभिन्न पहलुओं को समझने में सहायता करती है, जिससे भारत को अपनी रक्षा नीति को नए दृष्टिकोण से विकसित करने में मदद मिल रही है।
पैंटसिर सिस्टम की भूमिका
पैंटसिर प्रणाली, जिसे विभिन्न प्रकार के हवाई खतरों से निपटने के लिए डिज़ाइन किया गया है, एक अत्याधुनिक एयर डिफेंस सिस्टम है। यह विभिन्न प्रकार की मिसाइलों, ड्रोन और अन्य हवाई लक्ष्यों को प्रभावी ढंग से नष्ट करने की क्षमता रखता है। पैंटसिर सिस्टम की प्रमुख विशेषता इसकी गति और सटीकता है, जिससे यह तत्काल हवाई हमलों का जवाब देने में सक्षम है। यह प्रणाली भारतीय सेना के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह उसे सुरक्षा के अतिरिक्त स्तर प्रदान करती है।
पैंटसिर का उपयोग विभिन्न परिस्थितियों में किया जा सकता है, जैसे युद्ध क्षेत्र में हवाई रक्षा, महत्वपूर्ण स्थलों की सुरक्षा, और सामरिक गतिशीलता के लिए आवश्यक क्षमता की पूर्ति। इसकी बहुपरकारी क्षमताएं इसे भूमि, समुद्र और हवाई प्लेटफार्मों से कवर प्रदान करने की अनुमति देती हैं, जो कि एक व्यापक रक्षा रणनीति का हिस्सा है। भारतीय सेनाओं के लिए, यह प्रणाली पारंपरिक और असामान्य हवाई हमलों का सामना करने की क्षमता बढ़ाती है।
साथ ही, पैंटसिर प्रणाली उच्च स्तरीय इंटेलिजेंस और स्थानीयनृत्य को भी समाहित करती है, जिससे यह दुश्मन की गतिविधियों की पहचान और विश्लेषण में मदद करती है। इसके उपयोग से सटीक और प्रभावी जवाबी कार्रवाई सुनिश्चित होती है, जो न केवल सामान्य सुरक्षा उपायों को बढ़ाता है, बल्कि भारतीय वायु सुरक्षा को भी सुनिश्चित करता है। संक्षेप में, पैंटसिर प्रणाली भारतीय सेनाओं के लिए एक अनिवार्य उपकरण बन चुका है, जो युद्धक्षेत्र में विश्वसनीयता और सामर्थ्य का प्रतीक है।
भारत-रूस रक्षा डील के रणनीतिक महत्व
भारत और रूस के बीच हो रही इस रक्षा डील का रणनीतिक महत्व कई स्तरों पर व्यापक है। सबसे पहले, यह डील भारत के रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। 300 S-400 मिसाइलों और पैंटसिर सिस्टम की खरीद से भारत की वायु-रक्षा प्रणाली की क्षमताओं में उल्लेखनीय वृद्धि होगी। इससे न केवल भारतीय सुरक्षा को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि यह क्षेत्रीय सुरक्षा संतुलन बनाए रखने में भी सहायक होगा।
दूसरा, इस डील का वैश्विक सुरक्षा परिदृश्य पर भी गहरा प्रभाव पड़ेगा। भारत द्वारा S-400 मिसाइलों की खरीद से यह संकेत मिलता है कि भारत अपने सुरक्षा गठबंधन को मजबूत करने की दिशा में गंभीर है। यह कदम मौजूदा वैश्विक शक्तियों के बीच शक्ति संतुलन में बदलाव ला सकता है, विशेषकर उन देशों के लिए जो रणनीतिक रूप से भारत के निकट हैं।
तीसरा, यह डील भारत को न केवल सामुद्रिक सुरक्षा में बल्कि हवाई सुरक्षा में भी मजबूती प्रदान करेगी। S-400 की क्षमताओं के कारण, भारत अधिक से अधिक क्षेत्रीय खतरों का सामना करने में सक्षम होगा। इसके अतिरिक्त, यह डील क्षेत्र में अन्य देशों के लिए भी एक संदेश के रूप में कार्य कर सकती है कि भारत अपने रक्षा बल को आधुनिक बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगा।
इस प्रकार, भारत-रूस के बीच यह बड़ी रक्षा डील केवल आर्थिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि सामरिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह न केवल भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण को सुदृढ़ करेगा, बल्कि क्षेत्र में एक स्थिर और सुरक्षित वातावरण बनाने में भी सहायक होगा।